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Himachal Pradesh: तीन पुश्तों से Forest Land पर कब्जा रखने वालों को मिलेगा 50 बीघा तक का मालिकाना हक

सरकार ने वन अधिकार अधिनियम 2006 (Forest Rights Act 2006) के तहत किया ऐलान, 13 दिसंबर 2005 से पहले के कब्जे होंगे नियमित।

By: Mayank Thakur
Published on: March 22, 2025
Last edited on: 27 Mar 2025, 03:16 PM
Himachal Pradesh: तीन पुश्तों से Forest Land पर कब्जा रखने वालों को मिलेगा 50 बीघा तक का मालिकाना हक

हिमाचल में वन भूमि पर तीन पीढ़ियों का कब्जा होगा नियमित (News Himachal)

शिमला: हिमाचल प्रदेश सरकार ने वन भूमि (Forest Land) पर जीवन निर्वाह करने वाले लोगों के लिए बड़ी राहत की घोषणा की है। राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने गुरुवार को विधानसभा में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बताया कि सरकार वन भूमि पर 13 दिसंबर 2005 से पहले तीन पुश्तों तक के कब्जे को नियमित करेगी। इसके तहत दावेदारों को 50 बीघा तक वन भूमि का मालिकाना हक दिया जाएगा।

राजस्व मंत्री ने स्पष्ट किया कि यह कदम अतिक्रमण को बढ़ावा देने के लिए नहीं, बल्कि जीवन निर्वाह की भूमि पर मालिकाना हक देने के लिए उठाया गया है। “वन अधिकार अधिनियम 2006 के प्रावधानों में लोगों को 50 बीघा तक मालिकाना हक मिलेगा। जिसके लिए वन भूमि में कब्जे नियमित करने के लिए लोगों को फॉर्म भर कर आवेदन करना होगा,” नेगी ने कहा।

दावा करने के लिए आवश्यक शर्तें और प्रक्रिया

आवेदन के लिए दो लोगों की गवाही सहित ग्राम सभा का अनुमोदन आवश्यक होगा। दावेदारों को आवेदन में पत्नी का नाम भी जोड़ना होगा, जो इस भूमि पर बराबर की हिस्सेदार होगी। अनुसूचित जाति (Scheduled Caste – SC) या जनजाति (Scheduled Tribe – ST) वर्ग के आवेदकों को प्रमाण पत्र (Certificate) भी लगाना होगा, जबकि सामान्य वर्ग (General Category) के आवेदकों को गांव के निवासी होने का पहचान पत्र (Residence Proof), वोटर आईडी (Voter ID) या आधार कार्ड (Aadhaar Card) की कॉपी आवश्यक होगी।

राजस्व मंत्री ने बताया, “वन भूमि (Forest Land) पर 13 दिसंबर 2005 से पहले के तीन पुश्तों के कब्जे को सत्यापित करने के लिए साक्ष्य के तौर पर दो बुजुर्गों के बयान भी जरूरी हैं, जो दावेदारों के कब्जे की पुष्टि करेंगे।”

सत्यापन की प्रक्रिया

आवेदन को पंचायत की ग्राम सभा से वन अधिकार समिति (Forest Rights Committee – FRC) के माध्यम से अनुमोदित किया जाएगा। समिति में अधिकतम 15 लोग हो सकते हैं, जिसमें एक तिहाई महिलाएं भी शामिल होनी चाहिए। समिति मौके पर जाकर दावों के सत्यापन की रिपोर्ट बनाएगी।

सत्यापन प्रक्रिया में पटवारी और वन गार्ड की भागीदारी अनिवार्य होगी। बिना सूचना के अनुपस्थित रहने पर 1,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। सत्यापन के बाद मामला विशेष ग्राम सभा में जाएगा, जहां 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी व्यस्क वोट कर सकेंगे। ग्राम सभा से अनुमोदन के बाद, मामला उपमंडल स्तरीय समिति और फिर जिला स्तरीय समिति को भेजा जाएगा।

प्रदेश में पहले से कितने मामले हुए हैं स्वीकृत?

जगत सिंह नेगी ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में इस अधिनियम के तहत चंबा में सबसे अच्छा काम हुआ है। जिला चंबा में 22,730 हेक्टेयर भूमि समुदाय के नाम पर की गई है, जबकि कांगड़ा में 28 हेक्टेयर भूमि समुदाय के नाम की गई है। प्रदेश में समुदायिक अधिकारों के 583 मामलों में से 146 स्वीकृत किए गए हैं। व्यक्तिगत मामलों में, 4,883 दावों में से 594 मामलों को मंजूरी दी गई है, जिससे 46 हेक्टेयर भूमि लोगों को मिली है।

व्यक्तिगत मामलों में चंबा में 694 केस आए, जिनमें से 53 मंजूर किए गए। लाहौल स्पिति में 937 मामलों में से 116 और किन्नौर में 3,175 मामलों में से 425 केस स्वीकृत किए गए हैं।

जागरूकता बढ़ाने पर जोर

मंत्री ने कहा कि सरकार प्रदेश भर में वन अधिकार अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने जा रही है, ताकि सदियों से वन भूमि पर जीवन यापन करने वाले लोगों को भूमि का मालिकाना हक मिल सके। उन्होंने बताया कि जनजातीय क्षेत्रों में इस दिशा में अच्छा काम हो रहा है, लेकिन गैर-जनजातीय क्षेत्रों में अभी जागरूकता की कमी है।

जागरूकता बढ़ाने के लिए जिला और उपमंडल स्तर पर कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी। नेगी ने प्रदेश के लोगों से इस कानून का लाभ उठाने का आग्रह किया और कहा कि बिना पैसे खर्च किए लोग उस भूमि का मालिकाना हक ले सकते हैं, जिस पर वे पीढ़ियों से रह रहे हैं।